केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ई-वाणिज्य का विकास नागरिक केंद्रित हो। साथ ही ई-वाणिज्य के विकास को समाज के एक बड़े हिस्से के बीच लाभों के वितरण को लोकतांत्रिक बनाना चाहिए।
नई दिल्ली में पहले इंडिया फाउंडेशन की ‘भारत में रोजगार और उपभोक्ता कल्याण पर ई-वाणिज्य के निवल प्रभाव’ पर एक रिपोर्ट जारी करते हुए गोयल ने कहा कि प्रौद्योगिकी सशक्त बनाने, नवाचार करने और उपभोक्ता जरूरतों को पूरा करने का एक साधन है – कभी-कभी ज्यादा कुशलता से काम करने का यह साधन होता है। लेकिन, उन्होने कहा कि यह वृद्धि व्यवस्थित तरीके से होनी चाहिए और बाजार हिस्सेदारी की दौड़ में, हमें देश भर में 10 करोड़ छोटे खुदरा विक्रेताओं के लिए व्यवधान पैदा नहीं करना चाहिए।
गोयल ने भारत की विकासशील अर्थव्यवस्था की रक्षा करने और उन लोगों का समर्थन करने के महत्व को रेखांकित किया, जिन्हें अभी भी सकारात्मक कार्रवाई की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, “वहां एक बड़ा वर्ग है, जो अभी भी हमारी सहायता का हकदार है। जब भारत के भविष्य के लिए नौकरियों और अवसरों की बात आती है, तो मुझे लगता है कि हम सभी को अपनी भूमिका निभानी होगी।”
गोयल ने भारत के पारंपरिक खुदरा क्षेत्र पर ई-वाणिज्य के बढ़ते प्रभाव और रोजगार पर इसके संभावित प्रभाव के बारे में अपनी चिंताएं व्यक्त कीं। मंत्री महोदय ने इस संभावना पर प्रकाश डाला कि अगले दशक में भारत का आधा बाजार ई-वाणिज्य नेटवर्क का हिस्सा बन सकता है। उन्होंने ऐसी बन सकने वाली स्थिति को “चिंता का विषय” बताया।
ई-वाणिज्य के व्यापक निहितार्थों पर विचार करते हुए, गोयल ने इसके प्रभाव का निष्पक्ष और आंकड़ा-संचालित विश्लेषण करने का आग्रह किया। पश्चिमी देशों के साथ तुलना करते हुए, श्री गोयल ने ई-वाणिज्य के उदय के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में पारंपरिक “मॉम एंड पॉप” स्टोर्स के पतन का उल्लेख किया।