नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में ‘जल संचय जनभागीदारी पहल’ का शुभारंभ किया। वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि जल-संचय, ये केवल एक पॉलिसी नहीं है। ये एक प्रयास भी है, और यूं कहें तो ये एक पुण्य भी है। इसमें उदारता भी है, और उत्तरदायित्व भी है। आने वाली पीढ़ियाँ जब हमारा आंकलन करेंगी, तो पानी के प्रति हमारा रवैया, ये शायद उनका पहला पैरामीटर होगा। क्योंकि, ये केवल संसाधनों का प्रश्न नहीं है। ये प्रश्न जीवन का है, ये प्रश्न मानवता के भविष्य का है। इसीलिए, हमने sustainable future के लिए जिन 9 संकल्पों को सामने रखा है, उनमें जल-संरक्षण पहला संकल्प है। मुझे खुशी है, आज इस दिशा में जनभागीदारी के जरिए एक और सार्थक प्रयास शुरू हो रहा है। मैं इस अवसर पर, भारत सरकार के जलशक्ति मंत्रालय को, गुजरात सरकार को, और इस अभियान में भाग ले रहे देश के सभी लोगों को शुभकामनाएँ देता हूँ।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज जब पर्यावरण और जल-संरक्षण की बात आती है, तो कई सच्चाइयों का हमेशा ध्यान रखना है। भारत में दुनिया के कुल fresh water का सिर्फ 4 प्रतिशत ही है। हमारे गुजरात के लोग समझेंगे सिर्फ 4 प्रतिशत ही है। कितनी ही विशाल नदियां भारत में हैं, लेकिन हमारे एक बड़े भूभाग को पानी की कमी से जूझना पड़ रहा है। कई जगहों पर पानी का स्तर लगातार गिर रहा है। क्लाइमेट चेंज इस संकट को और गहरा रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि साफ पानी की उपलब्धता, जल संरक्षण की सफलता, इससे एक बहुत बड़ी वॉटर इकोनॉमी भी जुड़ी है। जैसे जल जीवन मिशन ने लाखों लोगों को रोजगार और स्वरोजगार के मौके दिए हैं। बड़ी संख्या में इंजीनियर्स, प्लंबर्स, इलेक्ट्रिशियन्स और मैनेजर्स जैसी जॉब्स लोगों को मिली हैं। WHO का आकलन है कि हर घर पाइप से जल पहुँचने से देश के लोगों के करीब साढ़े 5 करोड़ घंटे बचेंगे। ये बचा हुआ समय विशेषकर हमारी बहनों-बेटियों का समय फिर सीधे देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में लगेगा।
उन्होंने कहा कि वॉटर इकोनॉमी का एक पहलू, अहम पहलू हेल्थ भी है- आरोग्य। रिपोर्ट्स कहती हैं जल जीवन मिशन से सवा लाख से ज्यादा बच्चों की असमय मौत भी रोकी जा सकेगी। हम हर साल 4 लाख से ज्यादा लोगों को डायरिया जैसी बीमारियों से भी बचा पाएंगे यानि बीमारियों पर लोगों का जो खर्च होता था, वो भी कम हुआ है।